स्वदेश कुमार
आस्ट्रेलिया में भारतीयों के साथ हो रहे नस्लीय भेदभाव के मामलों में स्थानीय लोगों के साथ पुलिस वालों के भी शामिल होने के बात सामने आ चुकी है। इसके बावजूद वहां का मानवाधिकार संगठन इस तरह के मामलों में सक्रिय होता नहीं दिखता। हद तो यह कि अगर इंसाफ की आस लिए कोई भारतीय उसके पास जाता भी है तो उसके जख्मों पर मरहम लगाने की बजाय वहां के अधिकारी कहते हैं, जो हुआ भूल जाइए और नए सिरे से जिंदगी शुरू कीजिए। कुछ ऐसा ही वाक्या पेश आया है अप्रवासी भारतीय जयंत डागोर के साथ। नई दिल्ली स्थित अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त पूसा कैटरिंग कॉलेज से मैनेजमेंट की डिग्री लेकर आस्ट्रेलिया के मेलबर्न में स्थित पांच सितारा होटल क्राउन कैसीनो में शेफ की नौकरी करने वाले जयंत डागोर करीब 8 साल पहले अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ आज भी लड़ रहे हैं। कैरी पैकर के पांच सितारा होटल क्राउन कैसिनों में जयंत को उनके सीनियर माइकल शैल्टन उर्फ जौकी ने हर कदम पर प्रताडि़त किया। जयंत इसकी शिकायत करते रहे, लेकिन अधिकारियों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। एक बार शैल्टन ने उनके ऊपर 8-10 किलो का फ्रोजन चिकन का बाक्स ही दे मारा। उनकी गर्दन और सीने में गंभीर चोटें आई, जिसकी वजह से वो लंबे समय के लिए अस्पताल पहुंच गए। इसके कारण वह तीन-चार साल तक काम कर पाने की स्थिति में नहीं रहे। आस्ट्रेलियाई सरकार ने उन्हें विकलांग मानकर सहायता पेंशन देना तो शुरू कर दिया, लेकिन शैल्टन के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसके लिए उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री केविन रड को कई बार पत्र लिखा, पर नतीजा सिफर ही रहा। जुलिया गिलार्ड ने जब प्रधानमंत्री का पद संभाला तो उन्हें थोड़ी आस जगी, क्योंकि उन्होंने भारत दौरे में दिल्ली विश्र्वविद्यालय के छात्रों से मुलाकात में कहा था कि उनके यहां भारतीयों के खिलाफ नस्लीय भेदभाव पर सख्त कार्रवाई की जाती है। सितंबर 2010 में जयंत डागोर और उनकी पत्नी अन्ना मारिया ने जुलिया गिलार्ड को पत्र भेजा और कुछ सबूत भी, लेकिन उनके मामले को कैनबरा स्थित आस्ट्रेलियाई मानवाधिकार संगठन के असिस्टेंट सेक्रेटरी डॉ. जॉन बोसिर्ग के पास भेज दिया। जॉन ने 28 अक्टूबर 10 को जयंत को पत्र भेजकर जानकारी दी कि अगर वह समझते हैं कि उनके साथ नस्लीय भेदभाव हुआ है तो वह इसकी शिकायत उनके पास भेज सकते हैं। जॉन के इस पत्र ने जयंत के मन में उम्मीद जगाई, क्योंकि इसके पहले सिडनी स्थित मानवाधिकार संगठन उन्हें दो बार तरह-तरह के बहाने बनाकर टरका चुका था। 7 दिसंबर को जयंत अपनी पत्नी के साथ जॉन से मिलने पहुंचे। जयंत ने अपने केस के बारे में उन्हें बताया तो थोड़ी देर के लिए वह सन्न रह गए। जॉन की मौजूदगी में उनकी सेक्रेटरी ने फ्रांका ने जयंत से कहा, क्यों नहीं आप ये सब पुरानी बातें भूलकर नए सिरे से अपनी जिंदगी की शुरुआत करें। यह सुनकर जयंत दंपति को समझ आ गया कि आस्ट्रेलियाई मानवाधिकार संगठन से उन्हें कोई उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। अब उनकी आखिरी उम्मीद उस आवेदन पर टिकी है, जिसे उन्होंने भारत आकर यहां के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और विदेश मंत्री एसएम कृष्णा को दी थी। भारत सरकार ने उनका मामला एमनेस्टी इंटरनेशनल को भेज दिया है, जो कि मानवाधिकार हनन से जुड़े अंतरराष्ट्रीय मामलों को देखती है। एमनेस्टी इंटरनेशनल के महासचिव सलिल शेट्ठी की तरफ से इसी महीने के पहले हफ्ते में जयंत डागोर को बुलावा आया। इस पर जयंत ने सलिल शेट्ठी से मुलाकात कर उन्हें अपने केस से संबंधित सभी साक्ष्य मुहैया करा दिए हैं।