Wednesday 22 December 2010

भारतीयों के प्रति अमानवीय आस्ट्रेलियाई मानवाधिकार संगठन

स्वदेश कुमार
आस्ट्रेलिया में भारतीयों के साथ हो रहे नस्लीय भेदभाव के मामलों में स्थानीय लोगों के साथ पुलिस वालों के भी शामिल होने के बात सामने आ चुकी है। इसके बावजूद वहां का मानवाधिकार संगठन इस तरह के मामलों में सक्रिय होता नहीं दिखता। हद तो यह कि अगर इंसाफ की आस लिए कोई भारतीय उसके पास जाता भी है तो उसके जख्मों पर मरहम लगाने की बजाय वहां के अधिकारी कहते हैं, जो हुआ भूल जाइए और नए सिरे से जिंदगी शुरू कीजिए। कुछ ऐसा ही वाक्या पेश आया है अप्रवासी भारतीय जयंत डागोर के साथ। नई दिल्ली स्थित अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त पूसा कैटरिंग कॉलेज से मैनेजमेंट की डिग्री लेकर आस्ट्रेलिया के मेलबर्न में स्थित पांच सितारा होटल क्राउन कैसीनो में शेफ की नौकरी करने वाले जयंत डागोर करीब 8 साल पहले अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ आज भी लड़ रहे हैं। कैरी पैकर के पांच सितारा होटल क्राउन कैसिनों में जयंत को उनके सीनियर माइकल शैल्टन उर्फ जौकी ने हर कदम पर प्रताडि़त किया। जयंत इसकी शिकायत करते रहे, लेकिन अधिकारियों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। एक बार शैल्टन ने उनके ऊपर 8-10 किलो का फ्रोजन चिकन का बाक्स ही दे मारा। उनकी गर्दन और सीने में गंभीर चोटें आई, जिसकी वजह से वो लंबे समय के लिए अस्पताल पहुंच गए। इसके कारण वह तीन-चार साल तक काम कर पाने की स्थिति में नहीं रहे। आस्ट्रेलियाई सरकार ने उन्हें विकलांग मानकर सहायता पेंशन देना तो शुरू कर दिया, लेकिन शैल्टन के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसके लिए उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री केविन रड को कई बार पत्र लिखा, पर नतीजा सिफर ही रहा। जुलिया गिलार्ड ने जब प्रधानमंत्री का पद संभाला तो उन्हें थोड़ी आस जगी, क्योंकि उन्होंने भारत दौरे में दिल्ली विश्र्वविद्यालय के छात्रों से मुलाकात में कहा था कि उनके यहां भारतीयों के खिलाफ नस्लीय भेदभाव पर सख्त कार्रवाई की जाती है। सितंबर 2010 में जयंत डागोर और उनकी पत्‍‌नी अन्ना मारिया ने जुलिया गिलार्ड को पत्र भेजा और कुछ सबूत भी, लेकिन उनके मामले को कैनबरा स्थित आस्ट्रेलियाई मानवाधिकार संगठन के असिस्टेंट सेक्रेटरी डॉ. जॉन बोसिर्ग के पास भेज दिया। जॉन ने 28 अक्टूबर 10 को जयंत को पत्र भेजकर जानकारी दी कि अगर वह समझते हैं कि उनके साथ नस्लीय भेदभाव हुआ है तो वह इसकी शिकायत उनके पास भेज सकते हैं। जॉन के इस पत्र ने जयंत के मन में उम्मीद जगाई, क्योंकि इसके पहले सिडनी स्थित मानवाधिकार संगठन उन्हें दो बार तरह-तरह के बहाने बनाकर टरका चुका था। 7 दिसंबर को जयंत अपनी पत्‍‌नी के साथ जॉन से मिलने पहुंचे। जयंत ने अपने केस के बारे में उन्हें बताया तो थोड़ी देर के लिए वह सन्न रह गए। जॉन की मौजूदगी में उनकी सेक्रेटरी ने फ्रांका ने जयंत से कहा, क्यों नहीं आप ये सब पुरानी बातें भूलकर नए सिरे से अपनी जिंदगी की शुरुआत करें। यह सुनकर जयंत दंपति को समझ आ गया कि आस्ट्रेलियाई मानवाधिकार संगठन से उन्हें कोई उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। अब उनकी आखिरी उम्मीद उस आवेदन पर टिकी है, जिसे उन्होंने भारत आकर यहां के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और विदेश मंत्री एसएम कृष्णा को दी थी। भारत सरकार ने उनका मामला एमनेस्टी इंटरनेशनल को भेज दिया है, जो कि मानवाधिकार हनन से जुड़े अंतरराष्ट्रीय मामलों को देखती है। एमनेस्टी इंटरनेशनल के महासचिव सलिल शेट्ठी की तरफ से इसी महीने के पहले हफ्ते में जयंत डागोर को बुलावा आया। इस पर जयंत ने सलिल शेट्ठी से मुलाकात कर उन्हें अपने केस से संबंधित सभी साक्ष्य मुहैया करा दिए हैं।

Tuesday 10 August 2010

आस्ट्रेलिया में कुत्ते-बिल्लियों से गए गुजरे हैं भारतीय!

स्वदेश कुमार

आस्ट्रेलिया में एक बिल्ली को मारने पर 6 साल की जेल हो जाती है। देश का खोजी कुत्ता अफगानिस्तान में जख्मी होता है तो उसे देखने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री केविन रड तक पहुंच जाते हैं। इंसानों को भी यहां कई तरह के अधिकार मिले हुए हैं, लेकिन भारतीय शायद कुत्ते और बिल्लियों से भी गए गुजरे हैं। तभी तो वहां उनके जख्मों पर न तो कोई मलहम लगाने वाला है और न ही कोई इंसाफ दिलाने वाला। नई दिल्ली स्थित अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त पूसा कैटरिंग कॉलेज से मैनेजमेंट की डिग्री लेकर आस्ट्रेलिया के मेलबर्न में स्थित पांच सितारा होटल क्राउन कैसीनो में शेफ की नौकरी करने वाले जयंत डागोर अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ लड़ाई पिछले 10 साल से लड़ रहे हैं। जब आस्ट्रेलिया में इंसाफ मिलने की उनकी सारी उम्मीदें जवाब दे गईं तब उन्होंने भारत आकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और विदेश मंत्री एसएम कृष्णा से गुहार लगाई है। वह चाहते हैं उनका मामला एमनेस्टी इंटरनेशनल और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार में उठाया जाए। 1999 में जयंत को कैरी पेकर के पांच सितारा होटल क्राउन कैसिनों में शेफ की नौकरी मिली, लेकिन यहां जयंत को अपने सीनियर माइकल शैल्टन उर्फ जौकी ने हर कदम पर प्रताडि़त करना शुरू कर दिया। उनके खिलाफ नस्लभेदी टिप्पणी और धक्कामुक्की आम बात हो गई। जयंत से अधिक ड्यूटी कराने के साथ-साथ भारी वजन उठाने को कहा जाता। जयंत समय-समय इसकी शिकायत एचआर मैनेजर से करते रहे, लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। कुछ समय बाद जयंत को अपने दोनों हाथों का कारपल टनल होने पर ऑपरेशन कराना पड़ा। क्राउन कैसिनो के चिकित्सक ने भी अपनी रिपोर्ट में माना कि क्षमता से अधिक कार्य करने के कारण उनकी यह हालत हुई है। बाद में डॉक्टरों ने उन्हें मेडिकल अनफिट करार दिया। कुछ समय बाद जयंत दोबारा काम पर लौटे। इस बार शैल्टन ने उनके ऊपर 8-10 किलो का फ्रोजन चिकन का बाक्स ही दे मारा। उनकी गर्दन और सीने में गंभीर चोटें आई, जिसकी वजह से वह लंबे समय के लिए अस्पताल पहुंच गए। उन्होंने इसकी शिकायत प्रबंधन के आला अधिकारियों से की। घटनास्थल पर मौजूद एक आस्ट्रेलियाई युवती ने इस मामले में गवाही भी दी। डेढ़ साल तक शैल्टन पर कोई कार्रवाई न होते देख जयंत को यूनियन की तरफ से स्लेटर एंड गार्डन नामक वकील मुहैया कराने वाली कंपनी के पास भेजा गया। यह फर्म जयंत को 4 साल इधर से उधर भगाती रही। इस दौरान उसके आठ वकील बदले गए। जयंत ने मानसिक व शारीरिक प्रताड़ना के हर सबूत, जो वकीलों ने मांगे थे, उपलब्ध कराए, लेकिन उसका केस कोर्ट न जा सका। 4 साल खराब करने के बाद फर्म के वकीलों ने कह दिया कि आपका केस कमजोर है। जबकि इसी दौरान आस्ट्रेलियाई सरकार ने उन्हें विकलांग सहायता पेंशन देना शुरू कर दिया, यानी अब उन्हें काम करने के लिए अयोग्य करार दिया गया। जुलाई 2009 में जयंत ने लिखित शिकायत आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री केविन रड और उप प्रधानमंत्री जुलिया गिलार्ड को भेजकर न्याय की गुहार लगाई। 3 महीने के बाद केवल रड के कार्यालय से गोलमोल जवाब आया। इसके बाद जयंत ने मेलबर्न स्थित एमनेस्टी इंटरनेशनल और मानवाधिकार आयोग से मिलने के लिए समय मांगा, लेकिन उन्हें मना कर दिया गया। जयंत की लड़ाई में उनकी पत्‍‌नी अन्ना मारिया कंधे से कंधा मिलाकर साथ दे रही हैं, जो खुद एक आस्ट्रेलियाई हैं। भारत आए इस दंपति ने इसी 4 अगस्त को प्रधानमंत्री कार्यालय और विदेश मंत्रालय को पत्र के माध्यम से पूरे मामले से अवगत करा दिया है।

Friday 20 November 2009

एक चीते की परेशानी

मनीष चौहाण
एक जंगल में बहुत ऊंचे स्तर की आईक्यू वाला चीता रहा करता था। बड़ा विद्वान, बुद्धिजीवी, आत्मज्ञानी। दिक्कत बस इतनी थी कि वह दूसरे चीतों की तरह 120 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से नहीं दौड़ पाता था। इसके चलते हिरन कुलांचे भरते निकल जाते और वह उन्हें पकड़ नहीं पाता। तेजी से दौड़ते-भागते जानवरों का शिकार उसके लिए नामुमकिन हो गया तो क्या करता वह बुद्धिजीवी बेचारा। चूहों, खरगोश, सांप और मेढक जैसे जानवरों को खाकर किसी तरह गुजारा करने लगा। लेकिन उसे यह सब छिपकर करना पड़ता क्योंकि अगर कोई और चीता देख लेता तो यह शर्म के मारे डूब मरनेवाली बात हो जाती। है कि नहीं। आप ही बताएं।
वह अक्सर सोचता रहता कि दुनिया का सबसे तेज दौड़नेवाला जानवर होने से आखिर क्या फायदा? मैंका तो कुलांचे मारते हिरन तक  शिरका नहीं कर पाता। इसी सोच और उधेड़बुन में डूबा वह एक दिन जंगल के दूसरे चीते के पास जा पहुंचा जो अपनी शानदार रफ्तार के लिए आसपास के सभी जंगलों में विख्यात था। दुआ-सलाम के बाद फटाक से बोला – मेरे पास विकासवादी अनुकूलन की वे सारी खूबियां हैं जिसने हमारी प्रजाति को सबसे तेज दौड़नेवाला जानवर बनाया है। मेरी नाक की नली काफी गहरी है ऑक्सीजन जो मुझे ज्यादा न सोखने की क्षमता देती है। मेरे पास काफी बड़ा हृदय और फेफड़े हैं जो ऑक्सीजन को पूरे शरीर में बेहद दक्षता से पहुंचा देते हैं। इसके साथ ही जब दौड़ने के दौरान मैं मात्र तीन सेकंड में इतना त्वरण हासिल कर लेता हूं कि मेरी रफ्तार शून्य से 100 किलोमीटर प्रति घंटे तक पहुचाती है, तब मेरी सांस लेने की गति 60 से बढ़कर 150 प्रति सेकंड हो जाती है।
दौड़ने में मेरे अर्ध-आयताकार पंजे बड़े उपयोगी हैं। ऊपर से अपनी लंबी पूंछ का इस्तेमाल मैं रडर की तरह कर सकता हूं और दौड़ते-दौड़ते बड़ी तेजी से मुड़ सकता हूं। यानी शिकार को हर दिशा से दबोच सकता हूं। फिर भी...उसने लंबी सांस भरकर कहा – मैं चाहे जितनी कोशिश कर लूं, 120 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार नहीं हासिल कर पाता। सामनेवाला चीता आंख फाड़कर उसकी बात सुनता रहा और जब उसकी बात खत्म हो गई तो बोला – वावो, बड़ी दिलचस्प जानकारियां आपने दीं। मैं तो अभी तक यही समझता था कि मेरी नाक केवल सूंघने के लिए है। मेरे हृदय और फेफड़े मुझे जिंदा रखने के लिए हैं। और शिकार का पीछा करने के दौरान तो मुझे कुछ और दिखता ही नहीं कि पूंछ कहां जा रही है, पंजे कहां उठ रहे हैं। पता ही नहीं चलता। हां, सांस फूल जाती है, इसका अहसास रहता है। लेकिन तब तक तो शिकार मेरे जबड़े में आ चुका होता है।
दूसरा चीता बोलता रहा – बड़ा मजा आया आपकी दिलचस्प और चौंकानेवाली बातें सुनकर। वाकई आप तो बड़े आत्मज्ञानी हैं। तो ऐसा करते हैं कि हम अब एक साथ रहते हैं। मैं आपके हिस्से का भी शिकार करता रहूंगा और आप मुझे मेरे स्व और जगत का ज्ञान कराते रहना ताकि मैं भी आपकी तरह ज्ञानवान और विद्वान बन जाऊं। बुद्धिजीवी बन जाऊं। आत्मज्ञानी बन जाऊं।
पहले चीते ने उसकी बात मान ली। दोनों चीते एक साथ रहने लगे। धीरे-धीरे इस तरह उस जंगल में दो चीते हो गए जो 120 किलोमीटर प्रति घंटे की अधिकतम रफ्तार नहीं हासिल कर पाते थे और दूसरों की नजरों से छुपते-छिपाते खरगोश, चूहे, सांप, नेवले, मेढक, गोजर, केकड़े, कॉकरोच, बिच्छू आदि-इत्यादि खाकर जिंदा रहते थे।